Indus Valley Civilization Short Notes

Indus Valley Civilization Short Notes in hindi

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इस पोस्ट में Indus Valley Civilization Quick Revision Notes in Hindi संकलित किया गया है जो निश्चित ही आपके लिए फायदेमंद साबित होगा

Indus Valley Civilization Quiz in Hindi-

Indus Valley Civilization-Quick Revision Notes in Hindi-

हड़प्पा सभ्यता के प्रारंभिक स्थल सिंधु नदी Sindhu River के आसपास केंद्रित थे इसीलिए किसी सिंधु घाटी सभ्यता भी कहा जाता है।

सिन्धु घाटी सभ्यता का भौगोलिक विस्तार-

Geographical expansion of Indus valley civilization- सैंधव सभ्यता का भौगोलिक विस्तार उत्तर में मंडा (जम्मू कश्मीर) से लेकर दक्षिण में दैमाबाद (महाराष्ट्र) तक तथा पश्चिम में सुतकागेंडोर(बलूचिस्तान) से लेकर पूर्वी में आलमगीर (मेरठ उत्तर प्रदेश) तक था।

सिंधु घाटी सभ्यता अपने त्रिभुजकार स्वरूप में थी जिसका क्षेत्रफल लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर है।

सर्वप्रथम चार्ल्स मैसन ने 1826 में सिंधु सभ्यता का पता लगाया। वर्ष 1921 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के तत्कालीन अध्यक्ष सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में पुरातत्वविद दयाराम साहनी ने उत्खनन कर इसके प्रमुख नगर हड़प्पा Harappa का पता लगाया। सर्वप्रथम हड़प्पा स्थल की खोज के कारण इसका नाम हड़प्पा सभ्यता Harappa Civilization रखा गया।

रेडियो कार्बन 14 जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण 2500 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व माना गया है। नवीन शोध के अनुसार यह सभ्यता लगभग 8000 साल पुरानी है।

सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माता के निर्धारण का महत्वपूर्ण स्रोत उत्खनन से प्राप्त मानव कंकाल है। सबसे अधिक कंकाल मोहनजोदड़ो Mohenjo-Daro से प्राप्त हुए हैं। इनके परीक्षण से यह निर्धारित हुआ है कि सिंधु सभ्यता में चार प्रजातियां निवास करती थी- भूमध्य सागरीय, प्रोटो ऑस्ट्रेलॉयड, अल्पाइन तथा मंगोलॉयड। सबसे ज्यादा भूमध्य सागरीय प्रजाति के लोग थे।

सिन्धु घाटी सभ्यता की नगर योजना-

सिंधु घाटी सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी। इसकी सबसे बड़ी विशेषता थी पर्यावरण के अनुकूल इसका अद्भुत नगर नियोजन तथा जल निकासी प्रणाली।

सड़के एक दूसरे को समकोण पर कटती थी। लगभग सभी नगर दो भागों में विभक्त थे- प्रथम भाग में ऊंचे दुर्ग निर्मात थे। इनमें शासक वर्ग निवास करता था। दूसरे भाग में नगर या आवास क्षेत्र की साक्ष्य मिले हैं, जो अपेक्षाकृत बड़े थे। आमतौर के यहां सामान्य नागरिक, व्यापारी, शिल्पकार, कारीगर और श्रमिक रहते थे।

सड़कों के किनारे की नालियां ऊपर से ढकी होती थी।

हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथा कालीबंगा की नगर योजना लगभग एक समान थी। कालीबंगा वह रंगपुर को छोड़कर सभी में पकी हुई ईंटों का प्रयोग हुआ है।

बड़े-बड़े भवन हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की विशेषता बताते हैं। हड़प्पाकालीन नगरों के चारों ओर प्राचीर बनाकर किलाबंदी की गई थी, जिसका उद्देश्य नगर को चोर, लुटेरे एवं पशु दस्यु से बचाना था।

मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार सैंधव सभ्यता का अद्भुत निर्माण है जबकि अनगर सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है।

घरों के दरवाजे एवं खिड़कियां मुख्य सड़कों पर ना खुलकर गलियों में खुलती थी, लेकिन लोथल इसका अपवाद है। लोथल के दरवाजे एवं खिड़कियां मुख्य सड़कों की ओर खुलती थी। ईटो का अनुपात 4:2:1 [ल०:चौ०:उ०] ज्यादा प्रचलित था।

सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल-

Major sites of Indus valley Civilization-सिंधु घाटी सभ्यता के कुछ प्रमुख स्थल निम्नलिखित हैं-

हड़प्पा Harappa-

सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों की खोज सर्वप्रथम 1921 ईस्वी में हड़प्पा में की गई। हड़प्पा वर्तमान में रावी नदी के बाएं तट पर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी जिले में स्थित है।

स्टुअर्ट पिग्गट ने इसे  अर्द्ध औद्योगिक नगर कह है। इन्होंने हड़प्पा व मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानी कहा था।

नगर की रक्षा के लिए पश्चिम की ओर एक दुर्गा का निर्माण किया गया था। जिस टीले पर यह दुर्ग बना है उसे व्हीलर ने माउंड ए-बी (Mound A-B) की संज्ञा प्रदान की है।

मोहनजोदड़ो Mohenjodaro-

इसका सिंधी भाषा में अर्थ मृत्यु का टीला होता है। यह सिंध प्रांत (पाकिस्तान) के लरकाना जिले में सिंधु नदी के तट पर स्थित है।

सर्वप्रथम इसकी खोज राखालाल बनर्जी ने 1922 ईस्वी में की थी। मोहनजोदड़ो की शासन व्यवस्था राजतंत्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक थी।

बृहद स्नानागार मोहनजोदड़ो का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल है।

तांबे तथा टीन को मिलाकर हड़प्पावासी काँसे का निर्माण करते थे। 

मोहनजोदड़ो से काँसे की नर्तकी की एक मूर्ति पाई गई है जो द्रवी मोम विधि (Lost wax method) से बनी है।

इस स्थल से नाव के चित्र प्राप्त हुए हैं।

चन्हुदड़ो Chanhudaro-

यह सैंधव नगर मोहनजोदड़ो से 130 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व सिंध प्रांत (पाकिस्तान) में स्थित है। इसकी सर्वप्रथम खोज 1934 ईस्वी में एन० गोपाल मजूमदार ने की थी तथा 1935 ई० में अर्नेस्ट मैके द्वारा यहां उत्खनन करवाया गया।

चन्हूदड़ो एकमात्र पुरास्थल है जहां से वक्राकार ईंटें मिली है।

चन्हूदड़ोसे पूर्वोत्तर हड़प्पा कालीन संस्कृति (झुकर-झांगर) के अवशेष मिले हैं।

यह एक औद्योगिक केंद्र था जहां मणिकारी, मुहर बनाने, भार-माप के बटखरे बनाने का काम होता था। अर्नेस्ट मैके ने यहां से मनका बनाने का कारखाना तथा भट्ठी की खोज की है।

लोथल Lothal-

यह गुजरात के अहमदाबाद जिले के सरगवाल ग्राम की समीप दक्षिण में भोगवा नदी के तट पर स्थित है। इसकी खोज सर्वप्रथम डॉक्टर एस० आर० राव ने 1955 में की थी।

यह स्थल एक प्रमुख बंदरगाह था जो पश्चिम एशिया से व्यापार का प्रमुख स्थल था।

लोथल में नगर को दो भागों में न बताकर एक ही रक्षा प्राचीर से पूरे नगर को दुर्गीकृत किया गया था। 

इस स्थल से 20 समाधिया मिली है। यहां से तीन युग्मित समाधियों का उदाहरण भी मिला है। 

यहां से नाव का चित्र/मॉडल भी प्राप्त हुए हैं।

राखीगढ़ी RakhiGadhi-

हरियाणा के हिसार जिले में स्थित प्रमुख पुरातात्विक स्थल है।  

यहां से अन्नागार एवं रक्षा प्राचीर के साक्ष्य मिले हैं। 

मई 2012 मेंग्लोबल हेरीटेज फंडने इसे एशिया के दस ऐसी विरासत स्थलों की सूची में शामिल किया है जिसे नष्ट हो जाने का खतरा है।

कालीबंगा Kalibanga-

यह राजस्थान का हनुमानगढ़ जिले में घग्गर नदी के बाएं तट पर स्थित है। 

कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ काले रंग की चूड़ियां है। 

इसकी खोज 1951 में अमलानंद घोष द्वारा की गई तथा 1961 ईस्वी में बी०बी० लाल और बी०के० थापर के निर्देशन में खुदाई की गई। 

यहां से जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है। 

यहां के भवनों का निर्माण कच्ची ईटो द्वारा हुआ था, यहां से अलंकृत ईटो के साक्ष्य भी मिले हैं। 

कालीबंगा में शवो के अंत्येष्टि संस्कार हेतु तीन विधियों- पूर्ण समाधिकरण, आंशिक समाधिकरण एवं दाह संस्कार के प्रमाण मिले हैं।

पूर्ण शवाधान– मृतकों को कब्र में दफनाने की परंपरा।

आशिक शवाधान– इसमें पशु पक्षियों के खाने के बाद बचे शेष भाग को भूमि में दफना दिया जाता था। 

दाह संस्कार– मृतकों को जलाने की परंपरा।

बनावली Banawali-

  हरियाणा के फतेहाबाद जिले में स्थित इस पुरास्थल की खोज 1973 ईस्वी में आर०एस० विष्ट ने की थी।

 इस स्थल से संस्कृति के तीन स्तर- प्राक्क सैंधव, विकसित सैंधव तथा उत्तर सैंधव संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं।

 यहाँ जल निकासी प्रणाली का अभाव था। 

 यहां से मिट्टी का बना हल मिला है। 

 बनावली में अधिक मात्रा में जौ मिला है।

धौलावीरा Dhaulaveera-

 यह गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालुका में स्थित है। इसकी खोज 1967 ईस्वी में जे०पी० जोशी ने की थी। यहां से प्राप्त होने वाली सिंधु लिपि के दस बड़े चिन्हों से निर्मित शिलालेख महत्वपूर्ण उपलब्धि है। 

 धौलावीरा के निवासी जल संरक्षण की तकनीक से परिचित थे। 

 नगर तीन भागों में विभाजित था- दुर्गभाग, मध्यनगर तथा निकला नगर। 

 धौलावीरा से हड़प्पा सभ्यता एकमात्र स्टेडियम, खेल का मैदान मिला है।

हंटर के अनुसारमोहनजोदड़ोका शासन राजतंत्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक था।

व्हीलर के अनुसारसिंधु सभ्यता के लोग का शासन मध्यवर्गीय जनतंत्रात्मक शासन था और उसमें धर्म की महत्ता थी।

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सामाजिक जीवन Social Life -

सैंधव सभ्यता में मातृ देवी की पूजा होती थी, जिससे स्पष्ट होता है कि हड़प्पा समाज मातृसत्तात्मक था।

पुरुष एवं महिला दोनों ही आभूषणों का प्रयोग करते थे हार, पट्टीका, बाजूबंद और अंगूठी पुरुषों और महिलाओं दोनों के द्वारा पहनी जाती थी, लेकिन चूड़ियां, कमरबंद, पायल, कान के बाली केवल महिलाओं द्वारा पहने जाते थे।

चन्हूदड़ो से लिपिस्टिक के साक्ष्य मिले है।

सिंधु सभ्यता के लोग सूती और ऊनी वस्रों का प्रयोग करते थे।

श्रमिको की स्थिति का आकलन कर व्हीलर ने दास प्रथा को स्वीकार किया है।

चौपड़ और पासा, मछली पकड़ना, शिकार करना और बैल की लड़ाई उनके मनोरंजन खेल थे।

राजनितिक जीवन Political Life-

हंटर के अनुसारमोहनजोदड़ोका शासन राजतंत्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक था।

व्हीलर के अनुसारसिंधु सभ्यता के लोग का शासन मध्यवर्गीय जनतंत्रात्मक शासन था और उसमें धर्म की महत्ता थी।

आर्थिक जीवन Economical Life-

सिंधु सभ्यता की उन्नति का प्रमुख कारण उन्नत कृषि तथा व्यापार था। सिंधु सभ्यता का व्यापार केवल सिंधु क्षेत्र तक ही सीमित नहीं था बल्कि मिश्र, मेसोपोटामिया और मध्य एशिया से व्यापार होता था।

सुमेरिया के शासक सारगोन के काल की मिट्टी की पट्टिकाओं पर अंकित अभिलेख से ज्ञात होता है कि मेसोपोटामिया के मेलुहा, ढीलमुन और मगन के साथ व्यापारिक संबंध थे। यहां मेलुआ सिंध क्षेत्र की प्राचीन नाम है।

सैंधव सभ्यता के प्रमुख बंदरगाह- लोथल, रंगपुर, सुरकोटदा, प्रभासपाटन आदि थे।

हड़प्पा सभ्यता में माप-तौल की दशमलव प्रणाली तथा मापतौल की इकाई 16 के गुणक में होती थी।

इस सभ्यता के लोग गेहूं, जौ, राई, मटर, तिल, सरसों, कपास आदि की खेती करते थे। सबसे पहले कपास पैदा करने का श्रेय सिंधु सभ्यता के लोगों को दिया जाता है। यूनानियों ने इसे सिंडन नाम दिया है। ये लोग तरबूज, खरबूज, नारियल, अनार, नींबू, केला जैसे फलों से भी परिचित थे। सैंधववासियो के प्रमुख खाद्यान्न गेहूं और जौ थे। ये लोग लकड़ी का हल का प्रयोग करते थे।

कृषि उन्नति के साथ-साथ पशुपालन का भी विकास हुआ था। पशुओं में कूबड़ वाले बैल, भेड़, बकरी, हाथी, भैंस, गाय, गधे, सूअर व कुत्ते आदि होने का अनुमान है। गुजरात का निवासी हाथी पालते थे।

धार्मिक परंपराए-

सैंधव नगरों की खुदाई में मंदिर के साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं। 

मुहर में तीन सिंह वाले पशुपति शिव को एक जोगी के बैठने की मुद्रा में दर्शाया गया है। जो हाथी, बाघ और गैण्डे, से घिरे हुए हैं और उनके सिहासन के नीचे एक भैंसा है तथा उनके पैर के पास दो हिरण है।

हड़प्पा सभ्यता से स्त्री के गर्भ से निकलता हुआ पौधा का साक्ष्य प्राप्त हुआ है, जो उर्वरता देवी का सूचक है। इस सभ्यता की प्रमुख देवी मातृदेवी थी। 

कालीबंगा से प्राप्त अग्नि कुंड के साक्ष्य के आधार पर कहा जा सकता है कि उनके द्वारा अग्नि पूजा तथा स्वास्तिक आदि की पूजा की जाती थी।

सिंधु क्षेत्र के लोग वृक्ष (पीपल) और जानवरों (गैण्डा, कूबड़ वाले बैल) की पूजा करते थे।

हड़प्पा वासी भूत और बुरी ताकतों में विश्वास करते थे और इसलिए उन्होंने ताबीज का प्रयोग किया। तबीजों के आधार पर जादू टोने में विश्वास करने तथा कुछ जगहों की मुहरों (जैसे चन्हूदरो में) पर बलि प्रथा के दृश्य अंकित होने के आधार पर बलि प्रथा का भी अनुमान लगाया जाता है।

सैंधववासी पुनर्जन्म में विश्वास करते थे। इसलिए मृत्यु के बाद दाह संस्कार के तीन तरीके प्रचलित थे- पूर्ण शवाधान, आंशिक शवाधान, कलश शवाधान।

व्यापार एवं वाणिज्य

सिंधु वासियों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन, कृषि व उद्योग था। वस्त्र उद्योग इनका प्रमुख उद्योग था, जिसका प्रमुख केंद्र मोहनजोदड़ो था। ये सूती एवं ऊनी वस्त्रो का प्रयोग करते थे।

व्यापार वस्तु विनियम प्रणाली पर आधारित था। वस्तु विनियम प्रणाली के माध्यम से व्यपार किया जाता था।

विनियम बाटो के द्वारा नियंत्रित थे, जो चर्ट नमक पत्थर से बनाए जाते थे।

व्यापारिक वस्तुओं पर शिल्पियों व व्यापारियों द्वारा अपने मुहर की छाप लगाने की प्रथा थी। इस तरह के मुहर लोथल से प्राप्त हुई है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर पर नाव का चित्रांकन थे। इससे अनुमान होता है कि सिंधुवासी बाह्य व्यापार वाली नाव का उपयोग करते थे।

सिंधु सभ्यता में पोत निर्माण एवं नावों द्वारा समुद्री व्यापार होने की पुष्टि लोथल से प्राप्त गोदीबाड़ा के साक्ष्य से होती है। जो की समुद्री व्यापार के पड़ाव के रूप में स्थित बंदरगाह था।

सैंधववासियो की लिपि चित्रलेखात्मक तथा गोमुत्रिका पद्धति पर आधारित थी।

आयात- सोना, चांदी, तांबा, टीन, लाजवर्द।

निर्यात- कृषि उत्पाद, कपास निर्मित वस्तुएं, टेराकोटा की मूर्तियां, चन्हूदड़ो के मनके, लोथल से कौंच-शैल, हाथी दांत की वस्तुएं, तांबा आदि।

सैन्धवासी इन वस्तुओ को निम्न क्षेत्र से प्राप्त करते थे

वस्तुएं प्राप्ति स्थल
शिलाजीतहिमालय की पर्वतीय क्षेत्र
लाजवर्दबदख्शाँ (अफगानिस्तान)
सेलखड़ीराजस्थान, बलूचिस्तान
चांदीअफगानिस्तान, ईरान
फिरोजाखुरासान
सोनाकर्नाटक
तांबाराजस्थान

सैंधव स्थल से प्राप्त अवशेष एवं वस्तुए

स्थल अवशेष एवं प्राप्त वस्तुए
हड़प्पाकब्रिस्तान R-37, शवाधान पेटिका, शंख का बना बैल, स्त्री के गर्भ से निकला हुआ पौधा (उर्वरता की देवी), गेहूं व जौ के दाने, अन्नागार, स्वास्तिक एवं चक्र के साक्ष्य इत्यादि।
मोहनजोदड़ोबृहद स्नानागार, मातृ देवी की मूर्ति, काँसे की नर्तकी की मूर्ति, राज मुद्रांक, मुद्रा पर अंकित पशुपतिनाथ की मूर्ति, सूती कपड़ा, हाथी का कपाल खण्ड, गीली मिट्टी के दिए के साक्ष्य, गले हुए तांबे के ढेर, सीपी की बनी हुई पटरी, कुंभकारों के 06 भट्ठों के अवशेष एवं मिट्टी का तराजू, सबसे बड़ी ईट का साक्ष्य इत्यादि।
चन्हूदड़ोअलंकृत हाथी, वक्राकार ईंटे, कंधा, लिपस्टिक, चार पहिए वाली गाड़ी, मनके इत्यादि।
कालीबंगाआयताकार सात अग्नि वेदिकाये, जूते हुए खेत के साक्ष्य, कांच व मिट्टी की चूड़ियां, सिलबट्टा, सूती कपड़े की छाप, माणिक्य एवं मिट्टी के मनके, बेलनाकार मुहरे, मिट्टी के खिलौने तथा प्रतीकात्मक समाधियाँ आदि।
लोथलबंदरगाह, धान (चावल) और बाजरे का साक्ष्य, फारस की मुहर, तीन युगल समाधिया, धान की भूसी, मनका उद्योग के साक्ष्य, तांबे का कुत्ता, छोटा दिशा मापक यंत्र इत्यादि।
सुरकोटदाघोड़े की अस्थियां एवं एक विशेष प्रकार की कब्र इत्यादि।
बनावलीहल की आकृति वाले मिट्टी के खिलौने, जौ, तांबे के बाणाग्र इत्यादि।
स्थलनदियों के नामउत्खननकर्तावर्तमान स्थिति
हड़प्पारावीदयाराम साहनी (माधोस्वरूप वत्स के निर्देशन में)पाकिस्तान का मोंटोगोमरी जिला
मोहनजोदड़ोसिंधुराखालदास बनर्जीसिंध प्रांत का लरकाना जिला पाकिस्तान
चन्हूदड़ोसिंधुअर्नेस्ट मैकेसिंध प्रांत पाकिस्तान
कोटदीजीसिंधुफजल अहमद खानपाकिस्तान का सिंध प्रांत (मोहनजोदड़ो के समीप)
कालीबंगाघग्गरबी०बी० लाल एवं बी०के० थापरराजस्थान का हनुमानगढ़ जिला
रंगपुरभादरएस०आर० रावगुजरात का अहमदाबाद जिला
रोपड़सतलजयज्ञदत्त शर्मापंजाब का रोपड़ जिला
लोथलभोगवाएस०आर० रावगुजरात का अहमदाबाद जिला
आलमगीरपुरहिंडनखोज: यज्ञदत्त शर्माउत्तर प्रदेश का मेरठ जिला
सुतकागेंडोरदाश्कखोज: आरेल स्टेईनपाकिस्तान के मकरान के समुद्र तट के किनारे
बनावलीसरस्वतीआर०एस० विष्टहरियाणा का फतेहाबाद जिला
धोलावीराखोज: जे०पी० जोशी/आर०एस० विष्टगुजरात का कच्छ जिला

पतन

2000 इस पर्व के बाद सिंधु सभ्यता में गिरावट आई और धीरे-धीरे इसका पतन हो गया।

संभावित कारण- मिट्टी की उर्वरता में कमी, भूमि में अवसाद का जमना, आर्यो का आक्रमण, व्यपार में गिरावट, बाढ़, भूकम्प आदि।

सबसे स्वीकार्य कारण पारिस्थितिक असंतुलन को माना गया है।

सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के कारणइतिहासकार
बाढ़जॉन मार्शल, अर्नेस्ट मैके, एस०आर० राव
बाह्य एवं आर्यो का आक्रमणव्हीलर, गार्डन चाइल्ड
जलवायु परिवर्तनआरेल स्टेइन, अमलानंद घोष
भूतात्विक परिवर्तनएम०आर० साहनी
प्रशासनिक शिथिलताजॉन मार्शल
प्राकृतिक आपदा (मलेरिया, महामारी)के०यू०आर० केनेडी

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